मैं खो गई --
खोना क्या इत्तफ़ाक़ है
या सोई सी तलाश है
ना तुम थे
वो मन की छवि भी मज़ाक है
शायद ये पुरी मेरी फिराक़ है
हर बार का अहं
मैं सही थी सही हूँ भी
जानोगे ये तुम कभी न कभी
पर जब लहरों ने कभी दुबारा रुख न किया
क्या कभी चाहोगे जानना तुम ये
चाहे भी
तो अब मैं न सुनूंगी
झूठ ये बेबुनियाद किस्से थे
जिनमे मैं उलझ गई
फिर से एक झूठ, एक कायरता
मैं सह गई
पर असह्य ये मुसीबत है
के अब भी भूलने की नहीं
माफ़ी की गुंजाइश रखती हूँ
उसे तू बख्श भी दे
पर अपनी गुनहगार तू दोबारा ये भ्रम ....
तोड़ छोड़ ये अजीब सी उलझन
इसकी बस एक डोर
है तुझसे मुखातिब
बाकी का पूरा ताना-बाना
और सुलझाने की कोशिश
है नई शक्ल में एक पुरानी मुसीबत
Sunday, May 3, 2009
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