भई ! मैं तो मैं हूँ ।
यूनिवर्सिटी, कंपनी, राज्य, ठिकाना ...... इन सब का ठप्पा मुझ पर भी लगा है औरों सा। मगर फिर भी "कुछ" है चाहे न्यूनतम प्रतिशत ही सही, जो अकेली मेरी अपनी है । इसे शायद व्यक्तित्व या इन्डिविजुऐलिटी कहते हैं । हलाँकि ये भी निरंतर बदलती रहती है पर मेरी पहचान कायम रखती है।
मैं इसकी सिंचाई और मरम्मत पर मेहनत करूँ ये ज्यादा ज़रूरी जान पड़ता है। मियाँ , कौन जाने ये बाहरी स्टांप कितना बदल जाए और कब मेरी 'मैं ' पर हावी हो जाए।
ऐसी अजीबोगरीब ब्रैंड के सभी मालिक हैं । अद्भुत है ये संरचना जो कई बरसों तक हमारी नज़र से परे मशक्कत करती है। इज्ज़त करती हूँ ऐसी सभी जानी-अनजानी ब्रांडों की और आरजू है की मेरे हिस्से की तवज्जो मुझे भी
बख्शी जाती है ।
Friday, July 10, 2009
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