ऐसी कैसी ज़िन्दगी हो जो मैं अपने ही साथ वक़्त बिताने से कतराउँ...या अपने लिए ही समय ना निकाल पाऊँ। और जब मिले समय तो उलझी रहूँ।
ऐ मन! दिया और देंगे तुमको इतनी निगाह की मुझमे खोए न रहो....
पूरी आज़ादी होगी तुमहारी - चाहे जैसी भी बातें हो, उनको कहने और सुनाने की । सोचने और उनको करने या न करने का फैसला हम तुमसे ही पूछेंगे ।
देना साथ मेरा, चाहे वो निंदा करके ही क्यूँ न हो।
तुम्हारे बगैर मैं खाली और तुमको सुने बगैर मैं मत्सुन्न हो जाऊँगी ।
रहीम के दोहे यूँ ही नहीं सटीक कहे जाते, अब इस मौके पे मन तुमको ये सुनाया जाये -
"रहिमन निज संपत्ति बिना, कोऊ न विपत्ति सहाय ।
बिन पानी ज्यूँ जलज को नहीं रवि सके बचाय "
Saturday, January 23, 2010
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