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Friday, October 16, 2009

कल दिवाली है !







वैसे हर बार की दिवाली बहुत ख़ास नहीं होती थी । पर छ्ठ की धुन और छुट्टी की कमी में अक्सर दिवाली घर जाने की सफर में कटता था । ट्रेन से घरों के जगमगाते दीये देख के दिवाली मनाना अपने आप में एक अनोखा अनुभव था । एक बार तो दिवाली की रात ही घर पहुँची थी । पिछले साल अपने हॉस्टल की दिवाली की रंगोली और पूजा अच्छी थी । चाहे - अनचाहे अपने सुपरवाइज़र के घर गई थी ..और अगले दिन सुबह घर के लिए रवाना हुई थी ।

चाहे कुछ ख़ास न हुआ हो दिवाली पे पर एक त्योहार का एहसास काफी था खुश करने को । दूसरों को मनाते देखते भी, एक खुश होने की वजह रहती थी । मैं उन सभी छोटी -छोटी अनुभवों को आज बस याद कर रह हूँ । उनकी अहमियत और छोटी खुशियाँ आज तक टेकेन -फॉर -ग्रांटेड था ।

दिवाली घर हर बार नही बनाया पर मुझे सबसे प्रिय है । लाइट्स और दीया की तैयारियाँ अच्छी थीं । दीये को पानी में डुबोने पर उसके बुलबुले और सोंधी महक अच्छी होती है। शाम की चहल पहल...पटाखों की आवाज़ से गूंजता शहर ध्वनि प्रदुषण का प्रतीक था पर आज का सन्नाटा उससे भी संगीन जान परता है ।

सब कुछ है मैं यहाँ भी मना सकती हुं...पर न बाहरी शोरो-गुल है न भीतरी उल्लास ।

पर बेवकूफी है ऐसी शिकायतें ....और बेहतर है की अब भी मैं कम-से-कम भीतरी उल्लास को जागृत और कायम रखूं ...इन्टरनेट के ज़रिये काफी हद तक बाहरी शोरो-गुल भी मुझसे बहुत दूर नहीं ।

दिवाली मुबारक आप सबको !
और शुक्रिया उन सारे पिछले सालों का की अब भी मैं खुश होने की केपेबिलिटी रखती हुं।
दूर से मैं ज़्यादा समझ पाई दिवाली की अहमियत !

Thursday, October 15, 2009

mera pura dhyan khaane pe hoga to main kaam kab karungi :((

itni creative main pehle kabhi nahi hui....
kuch diff banati hum aur chao se khati hun!!!

par beech me apne be taras khati hun...

ye japan hai...mujhe nahi aana yahan dubara

subah utho to the first thought comes is "doesn't it feel like a loooooonng fast!"
kahin bhi jaake kuch kharidke nahi kha sakti...
sochna parta hai...preplanning z a must.....
kuch diff nahi layi to chirhti hun ke kya khaungi....vahi bread...oh no! subah ki bani potato kheer [ye creative idea ab ghisa pita ho chuka hai]

kuch der baad khud ko sambhal ke banaya...kya cabage aur muli ki sandwich...fridge khola to mayonaise dikha...nahi last time harusame me dala to ulti si aa gayi thi !!
jhat band kiya fridge....aaj instead of aloo cabbage ki sabzi...aloo ki bhujiya banayi...bread toast kiya ...
socha aaj bhujiya ki hi sandwich khaun...par tabhi yaad aaya tha ki muli aur cabbage bread ke saath khate hain...aur beech beech mein bhujiya..

aur kitni daastaan sunaun...pata hai...mujhe kamsekam haldi to laani hi chahiye thi...par mujhe mat pucho kya dhun thi sawar ki manage kar lungi ya shayad dusri chizon mein khane ko nazarandaz kar gayi thi...

ab ye gaatha main foto laga ke bhi suna sakti thi....par sach kehti hun sanyam nahi hota ki khane ki photo lun chahe hostel me hun ya restaurant mein.....jab khana dikhta hai to bas khane ki sujhti hai...aur kuch ki sudh nahi rehti...

seekho doston isse kuch...jaise maine seekha...importance of food and the difficulties of surviving!!!!!!!!! hehehehehehehehe